विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 16
द्वारका की जो सैनिक तैयारी थी, उसका इस प्रसंग में अच्छा वर्णन किया गया है। जो द्वारका का हाल था, वही प्रत्येक जनपद की राजधानी का था। ये राजधानियां अपने-अपने यहाँ दुर्ग के रूप में भी प्रतिष्ठित थीं। यूनान के पुर-राज्यों में दुर्गरूपी-नगर (एक्रोपोलिस) की रक्षा के लिए नागरिक अपने प्राणों की बाजी लगा देते थे। हेरोक्लाइत का कहना था कि जनता को अपने कानून और अपने नगर की दीवारों के लिए समान भाव से लड़ना चाहिए। यूनान के पुर-राज्यों से कहीं अधिक विस्तृत शक्तिशाली तथा देश और काल में दीर्घजीवी भारत के जनपद-राज्य थे, जिनका तांता कम्बोज से कलिंग तक फैला हुआ था। यहाँ भी जनपद की रक्षा का नागरिकों की दृष्टि में अत्यधिक महत्त्व था। इसे जनपद-गुप्ति कहा जाता था। ‘कथं रक्ष्यो जनपदः?’[1] यह प्रश्न जनपद की भक्ति रखने वाले नागरिकों के सम्मुख सदा रहता था एवं रक्षा के लिए दुर्ग, गुल्म, संक्रम (पुल), द्वार, परिखा, प्राकार, आयुधागार, धान्यागार, भाण्डागार, अश्वागार, गजागार आदि अनेक साधन तैयार रखे जाते थे। नगर को ऐसा सुगुप्त बनाया जाता था कि समय पड़ने पर स्त्रियां भी पुरुषों की भाँति मोर्चा ले सकें। गंधार प्रदेश में वीर आश्वकायनों के सुवास्तु क्षेत्र में यूनानियों ने जैसे ही पैर रखा‚ उन्हें मशकावती और वरणा इन दो दुर्गों की अभेद्य गुप्ति का परिचय मिल गया, जहाँ स्त्रियों ने भी डटकर लोहा लिया। युद्ध के समय जब शाल्व ने द्वारावती का घेरा डालकर (अरुन्धन) उसको चारों ओर से छेक लिया (व्यूह्य विष्ठितः) तब द्वारका के तत्कालीन रक्षक ने ‘सर्वाभिसार’ युद्ध की घोषणा कर दी। नगर के चारों ओर कोस भर भूमि खोदकर ऊंची-नीची कर दी गई।[2] पुल(संक्रम) तोड़ दिये गए; नावों का चलना बन्द कर दिया गया; बिना आज्ञापत्र के न कोई भीतर से बाहर जा सकता था और न किसी को बाहर से भीतर प्रवेश करने दिया जाता था।[3] नगर में घोषणा हुई कि कोई सुरापान न करे, क्योंकि प्रमादग्रस्त नागरिकों पर शत्रु के आक्रामण का भय था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शान्ति. 69।1
- ↑ समन्तात्क्रोशमात्रं च कारिता विषमा च भूः 16। 16
- ↑ न चामुद्रोभिनिर्याति न चामुद्रः प्रवेश्यते
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज