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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 16
सेना को पिछला वेतन और भोजन दे दिया गया; सबको हथियार और सैनिक वेश से सज्जित कर दिया गया। सेना में घोषणा हो गई कि वीरता के कार्य करने वाले पुरस्कृत होंगे। नगर के गोपुर, उनमें बने हुए अट्ट और अट्टालक, आने-जाने की पौरें[1], उनके साथ बने हुए मंच[2] बड़े फाटकों में लगे हुए भुईंनासी ताले[3] हुड़के (हुड़) और गरारियां[4] जिन पर किवाड़ें दौड़ती थीं- इन सबका पक्का प्रबन्ध करके नगर की रक्षा की गई। इसके अतिरिक्त शतघ्नी लाङ्गल,[5] भुशुण्डि, पत्थर के गोले,[6] कचग्रहणी,[7] जलते हुए लुआठे और शोले फेंककर शत्रु-सेना में प्रलय मचाने वाले[8], उष्ट्रिका, हुड़श्रृंगी इत्यादि अनेक आयुधों से दुर्ग को सुगुप्त कर दिया गया। वृष्णि सैनिकों की चुनी हुई टुकड़ी[9] ने, जिसमें प्रसिद्ध कुलों के वीर थे‚ मुख्य रक्षा का भार अपने हाथों में लिया। आवश्यकतानुसार मोर्चों पर पहुँचकर मार करने वाली टुकडि़यां[10], सवार और पैदल अपने-अपने स्थानों पर सावधान होकर डट गए। युद्ध के समय धन की अधिक-से-अधिक बचत की जाय, इस दृष्टि से नट, नर्त्तक, और गवैयों को दुर्ग से बाहर भेज दिया गया। द्वारका की रक्षा का यह प्रबन्ध शास्त्रदृष्ट विधि से किया गया। ज्ञात होता है कि महाजनपद युग में दुर्ग-गुप्ति के विषय पर विशेष ग्रन्थों की रचना हुई थी। उनका कुछ आभास कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मिलता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्रतोली
- ↑ उपतल्प
- ↑ यन्त्र-खनक
- ↑ चक्र
- ↑ हल नामक लोहे का हथियार
- ↑ अश्मगुड़क
- ↑ बाल पकड़कर खींच लेने वाले यन्त्र
- ↑ उल्कालातावपोथिका
- ↑ मध्यम-गुल्म
- ↑ उत्क्षिप्त गुल्म
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