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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 13
इतना कहकर हाथों से मुंह ढककर द्रौपदी रोने लगी। उसके दुःख और शोक से उत्पन्न आंसू मेंह की तरह बरसने लगे। क्रोध और रुदन से उसका कण्ठ रुंध गया। फिर उसने और भी प्रचंड भाव से कहा, “हे कृष्ण, न मेरे कोई पति हैं, न कोई पुत्र हैं, न कोई भाई है, न पिता या बंधु है, तुम भी नहीं हो, जो उन क्षुद्रों से इस प्रकार मुझे इतना अपमानित देख सके। मेरे दुःख की अग्नि जब तक सबको न जला डालेगी, किसी प्रकार शान्त न होगी। कर्ण की वह हंसी मैं कभी नहीं भूल सकती।” द्रौपदी के ये दुःख भरे वचन सुनकर कृष्ण ने वीरों के उस समाज में कहा, “हे द्रौपदी, जिन्होंने तुम्हारा अपमान किया है, जिन पर तुम क्रुद्ध हो, शीघ्र ही उनकी स्त्रियां भी इसी प्रकार रोयेंगी। अर्जुन के बाणों से निकली हुई रक्त की धाराओं में वे अवश्य डूबेंगी। पाण्डवों के लिए जो आवश्यक है, मैं करूंगा, तुम शोक मत करो। मैं प्रतिज्ञा करता हूं, तुम फिर पटरानी बनोगी। आकाश चाहे गिर जाय, हिमालय चाहे टूट जाय, पृथ्वी चाहे फट जाय, समुद्र चाहे सूख जाय, किन्तु मेरा वचन मिथ्या न होगा।” कृष्ण द्यूत के समय क्यों नहीं पहुँचे?
इतना कहकर पाण्डवों की ओर अभिमुख हुए, “हे युधिष्ठिर, यदि मैं उस समय द्वारका में होता तो बिना बुलाये भी द्यूत-सभा में पहुँच जाता और तुम्हें यह कष्ट न देखना पड़ता। सब लोगों को द्यूत के दोष समझाकर मैं उसे रोक देता। मेरे समझाने से यदि धृतराष्ट्र मान जाते तो कौरवों का हित और धर्म की रक्षा होती। यदि न मानते तो मैं उन सबको बलपूर्वक मनाता और पासों को तोड़कर फेंक देता। किन्तु मैं उस समय द्वारका से आनर्त (उत्तरी गुजरात) की ओर गया हुआ था। मुझे तो द्वारका में लौटने पर तुम्हारी विपत्ति का हाल पीछे मालूम हुआ। सुनते ही मैं उद्विग्न मन से शीघ्र ही यहाँ चला आया। सचमुच आप सब पर बड़ी विपत्ति पड़ी।” युधिष्ठिर के पूछने पर कि आप उस समय द्वारका में क्यों नहीं थे, कृष्ण ने बताया कि वह शाल्वराज से युद्ध करने के लिए आनर्त देश में स्थित उसकी राजधानी सौभनगर चले गए थे। बात यह हुई कि जब कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया और वह इन्द्रप्रस्थ से लौटकर घर भी न पहुँच पाये थे, तभी शाल्व ने अपने बंधु शिशुपाल की मृत्यु का बदला लेने के लिए द्वारका पर चढ़ाई कर दी और वहाँ के नागरिक जीवन को अस्तव्यस्त करके एक विध्वंस मचा दिया। लौटने पर कृष्ण को सब हाल मालूम हुआ और उन्होंने सौभ पर चढ़ाई करके शाल्व को उसके सहायकों के साथ परास्त कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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