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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(221) (गोपी कहती है-) ‘सुनो, सुनो, व्रजरानी यशोदा! तुमने अपने पुत्र को बहुत दुलारा (जिससे यह बिगड़ गया) है। (तुम्हारे) इस बालक ने गोपबालकों को (साथ) लेकर तथा (मेरे) भवन में जाकर वहाँ कुछ गोरस ढुलकाया तथा कुछ खाया। किसका बालक अनोखा (निराला) नहीं होता, किसने बड़े कष्ट से उसे उत्पन्न नहीं किया है, मैंने भी तो अपने गर्भ से (यह) पुत्र बहुत दिनों पर पाया है (अर्थात् मेरे भी तो बड़ी अवस्था में पुत्र हुआ; किंतु इतना अनर्थ तो वह भी नहीं करता)।’ सूरदासजी कहते हैं-(व्रजरानी ने उसे उलटे डाँटा-) ‘तू भी गँवार (झगड़ालू) है, इस मेरे लाल का हाथ पकड़कर तूने ही इसके मुख में दही लिपटा दिया है। ये गोपियाँ अत्यन्त झूठ बोलनेवाली हैं। झूठ-मूठ ही इन्होंने कन्हाई को बँधवा दिया।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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