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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग(258) (माता कहती हैं-) ‘बलराम! मेरी बात सुनो। मुझे इनकी पूजा कर लेने दो; क्योंकि अब ये चोरी में अपना नाम प्रसिद्ध करने लगे हैं। मेरे घर में नवों निधियाँ हैं; तुम्हीं बताओ, यहाँ किसका अभाव है? मैं मना करती हूँ-पुत्र! कहीं मत जाओ! किंतु रात-दिन कहते-कहते हार गयी। तुम भी मुझे ही दोष लगाते हो कि मुझे श्याम से भी मक्खन प्यारा है!’ (बलरामजी कहते हैं-) मैया! सुन, तुझे छोड़कर और किसको कहूँ, तेरे क्रोध करने पर दूसरा कौन रक्षा कर सकता है? तेरी शपथ! ये व्रज की स्त्रियाँ झूठ-मूठ ही उलाहना लेकर आती हैं।’ सूरदासजी कहते हैं-श्यामसुन्दर कब से रस्सी में बँधे हैं? अब तो वे अत्यन्त व्याकुल हो गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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