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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग(284) श्रीनन्दनन्दन ने जब वृन्दावन देखा तो उनको बहुत बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ। जहाँ-जहाँ गायें चरती हुई जाती थीं, वहाँ-वहाँ गोपबालकों के साथ स्वयं भी दौड़ते रहे। (बड़े भाई से बोले-) ‘दाऊ दादा! मुझे छोड़कर मत आया करो, मैं तुम्हारे साथ ही आऊँगा। आज तो किसी प्रकार मैया यशोदा ने छोड़ दिया है, (अकेले) कल नहीं आ पाऊँगा। नन्दबाबा की शपथ, मैं सोता रहूँ तो मुझे पुकार लेना।’ सूरदासजी कहते हैं कि इस प्रकार श्यामसुन्दर ने सखाओं सहित बलरामजी से प्रार्थना की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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