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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग रामकली(49) मोहन माखन खाते हुए खीझते जा रहे हैं। नेत्र लाल हो रहे हैं, भौंहे तिरछी हैं, बार-बार जम्हाई लेते हैं। कभी (नूपुरों को) रुनझुन करते घुटनों से चलते हैं, शरीर धूलि से धूसर हो रहा है, कभी झुककर अपनी अलकें खींचते हैं, जिससे नेत्रों में आँसू भर आते हैं, कभी तोतली वाणी से कुछ कहने लगते हैं, कभी बाबा को बुलाते हैं। सूरदासजी कहते हैं कि श्रीहरि की यह शोभा देखकर माता पलकें भी नहीं डालतीं। (अपलक देख रही हैं।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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