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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री(11) आज श्रीनन्दरायजी के यहाँ मंगल-बधाई बज रही है, सब मंगलगान करो। (गोपियाँ) मंगल-कलश सजाकर दही, फल तथा (आम की) नवीन डालियाँ (टहनियाँ) लिये आयीं। गोप-सखाओं ने एकत्र होकर श्रीनन्दरायजी के गले में पुष्पों की माला पहनायी। सूत, मागध, बंदीजन बार-बार अनेक प्रकार के विनोद कर रहे हैं। जो भी आये, व्रजराज ने उनकी आशाएँ पूर्ण कीं। सभी मिलकर आशीर्वाद दे रहे हैं कि ‘श्रीनन्दरायजी के लाड़िले लाल करोड़ों वर्ष जीवें।’ श्रीनन्दजी ने सभी व्रज के लोगों को सजाकर वस्त्र दिये। ऐसी शोभा को देखकर सूरदास अपने को ही न्योछावर करता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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