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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी(205) श्यामसुन्दर (किसी) गोपी के सूने घर में गये। वहाँ मक्खन खाकर शेष सब गोरस (दूध-दही) गिरा दिया और बर्तनों को फोड़कर चूर-चूर कर दिया। बहुत दिनों का पुराना एक बड़ा मटका था, उसके भी दस टुकड़े कर दिये। सोते हुए बालकों पर मट्ठा छिड़करकर हँसते हुए किलकारी मारकर भाग चले। उसी समय वह गोपी आ गयी और घर से निकलते हुए श्याम उसकी पकड़ में आ गये। उसने देख लिया कि घर के सब बर्तन फूट गये हैं और दूध-दही ढुलकाया हुआ है। दोनों हाथ उसने दृढ़ता से पकड़ लिया और व्रजरानी के सामने (लेकर) गयी। सूरदासजी कहते हैं-(वहाँ जाकर बोली-) ‘अब हमलोग किसके यहाँ जाकर बसें? हमारा सम्मान तो व्रज छोड़ देनेपर ही बचा रह सकता है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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