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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नट(212) (माता कहती हैं-) पुत्र! तुम दूसरों के यहाँ गोरस के लिये क्यों जाते हो? घरपर ही तुम्हारी कृष्णा और धवला गायों का मक्खन (बहुत) है, उसे माँगकर क्यों नहीं खा लिया करते? ये सब (गोपियाँ) प्रतिदिन सबेरे-सबेरे उलाहना देने के बहाने उठकर चली आती हैं। अनहोने दोष लगाती हैं, अद्भुत बातें बनाती (गढ़ लेती) हैं। ये सर्वथा निःशंक हैं, सामने होकर झगड़ा करती हैं, जिसे सुन-सुनकर व्रजराज रोष करते हैं। मुझसे कहती हैं-‘तू कृपण है, तेरे घर तेरे पुत्र का भी पेट नहीं भरता।’ सूरदासजी कहते हैं कि इस प्रकार माता पुत्र को उठाकर गोद में ले लेती हैं और उसकी मनुहार (विनती-खुशामद) करके रोकती हैं कि ‘श्यामसुन्दर! नित्य उलाहना सुनने से तुम्हारे पिता दुःख पाते (दुःखी होते) हैं।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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