विषय सूची
श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग(145) माता बड़ी रसमयी (प्रेमभरी) वाणी से पुकारती हैं ‘सुन्दर बड़े-बड़े लोचनोंवाले गोपाल! शीघ्र आओ, मैं तुम्हारी बलैया लूँ। तुम्हें नन्दबाबा बुला रहे हैं, थाल परोसा हुआ रखा है। (बाबा भोजन के लिये) तुम्हारा रास्ता देख रहे हैं; भात ठंढा हुआ जाता है, (इससे बाबा) खिन्न हो रहे हैं, मेरे लाल! झटपट चलो। मैं तुम्हारे इन नन्हें चरणों पर बलिहारी जाती हूँ, दौड़कर अपनी चाल तो दिखलाओ। लाल! यह हंस के समान अटपटी मन्दगति (इस समय) छोड़ दो।’ सूरदासजी कहते हैं-(मैया ने कहा), जो शीघ्रतापूर्वक पहले घर पहुँच जाय, वही राजा होगा। यदि बलराम पहले पहुँच जायँगे तो सब गोपबालक तुम्हारी हँसी करेंगे।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |