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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(93) (माता कहती हैं-) ‘मेरे प्यारे लाल! पालने में झूलो। तुम्हारे इस (सिसकने रोने) पर मैं बलिहारी जाती हूँ। बार-बार मैं तुम्हारी बलैयाँ लूँ, नन्दभवन! तुम हठ मत करो। मोहन! (नेत्रों को मलकर) हाथों को काजल से मत भरो। (मलने से) नेत्र अत्यन्त लाल हो जायँगे। मस्तक पर टोपी और चरणों में नूपुर पहिनकर वहाँ जाओ, जहाँ नन्दबाबा बैठे हैं।’ सूरदासजी कहते हैं कि जगत् के धारणकर्ता प्रभु का यह विनोद माता यशोदा, बाबा नन्द और बड़े भाई बलरामजी देख रहे हैं। देवता, गन्धर्व तथा मुनिगण इस विनोद को देखकर भ्रमित हो गये। सभी देखते हैं कि प्रभु यह क्या लीला कर रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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