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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नट(193) (श्यामसुन्दर ने) देखा कि गोपी युमनाजी जा रही है तो स्वयं यह बात पूछते हुए कि ‘यहाँ कौन है?’ उसके घर में चले गये। घर के भीतर जाकर देखाा कि वहाँ दो गोपशिशु हैं। (बालकों की) भीड़ देखकर वे दोनों शिशु बहुत डर गये और रो पड़े। तब श्यामसुन्दर एक गोपसखा के कंधे पर चढ़ गये और उन्होंने छींके उतार लिये। सब मिलकर दही और मक्खन खाने लगे तथा दूध गिरा दिया। उसके सभी बछड़ों को खोल दिया, वे सब एकत्र होकर वन में भाग गये। दोनों शिशुओं को मट्ठा छिड़ककर उससे सराबोर करके गोपसखाओं को आगे बढ़ा दिया। उस सखी (गोपी) ाके आते देखकर सखाओं ने भागते हुए उससे (सारा समाचार) कह दिया। गोपी ने आकर जो अपने घर में श्यामसुन्दर को देखा तो दरवाजे पर (मार्ग रोककर) खड़ी हो गयी। (उसके) हृदय में तो प्रेम था, किंतु मुखपर क्रोध लाकर उस गोपी ने सारी बात पूछी। किंतु मोहन के मुख को देखकर वह अपने शरीर की सुधि ही भूल गयी, तभी श्यामसुन्दर ने (चिढ़ाने के लिये) उसके वक्षःस्थल पर नख से आघात किया। (अब तो) गोपी रस के अत्यन्त वश हो गयी, अपने शरीर और (सूने) घर को भी वह भूल गयी। सूरदासजी कहते हैं कि वह मेरे स्वामी का हाथ पकड़कर उन्हें अपने साथ व्रजरानी के पास ले आयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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