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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी(189) श्यामसुन्दर स्वयं धीरे से सूने घर में घुस गये, सभी सखाओं को बाहर ही छोड़ दिया; वहाँ भीतर उन्होंने दही और मक्खन देखा। तुरंत के मथे हुए दही से निकला मक्खन वे पा गये। उसे उठा-उठाकर होंठो पर रखने और अरोगने लगे। (फिर) संकेत करके सब सखाओं को बुला लिया, उन्हें भी अपने हाथों में भर-भरकर देने लगे। वक्षःस्थल पर दही की बूँदें छिटक रही हैं। मन में भय करके इधर-उधर देखते भी जाते हैं। सखाओं की आड़ लेकर उठते हैं और सबको देख लेते हैं (कि कोई कहीं से देखती तो नहीं)। फिर मक्खन लेकर खाते हैं, इन श्रेष्ठ (बड़भागी) गोपबालकों के हाथ से भी लेते हैं। छिपी हुई गोपी यह सब देख रही है। उसके हृदय में अत्यन्त आनन्द भर रहा है, वह मग्न हो रही है। सूरदासजी कहते हैं-श्यामसुन्दर के मुख को देखकर वह थकित (निश्चेष्ट हो रही है, उससे कुछ कहते (बोलते) नहीं बनता, श्यामसुन्दर को असने अपना मन अर्पित कर दिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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