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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(38) आनन्दमग्न श्रीननछरानी अपने पुत्र श्यामसुन्दर को खेला रही हैं। वे ब्रह्मा से मनाती हैं-‘मेरा लाल कब घुटनों चलने लगेगा। कब अपनी इन आँखों से मैं इसके दूध की दो दँतुलियाँ (छोटे दाँत) देखूँगी। कब यह कमल-मुख बोलने लगेगा और मैं उन शब्दों को सुनूँगी।’ (प्रेम-विभोर होकर वे पुत्र के) हाथ, चरण, अधर तथा भौहों का चुम्बन करती हैं एवं लटकती हुई अलकों को चूम लेती हैं। सूरदास ऐसी बुद्धि कहाँ से पावे, कैसे इस शोभा का वर्णन करके बतावे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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