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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(278) (माता कहती हैं-) ‘नन्दनन्दन! जागो, जाग जाओ! सूर्य बहुत ऊपर चढ़ आया, पूरी रात्रि बीत गयी, सब किवाड़ खुल गये।’ माता यशोदा (अपने लाल के आयुवर्धन की कामना से उसपर) घुमा-घुमाकर जल पीती हैं (और कहती हैं-) ‘मेरे प्राणों के आधार! उठो! घर-घर गोपियाँ (अपने) हाथ के कंकणों की झंकार करती दही मथ रही हैं। तुमने संध्यासमय गाय दुहने के लिये कहा था, इसलिये अब देर हो रही है!’ सूरदासजी कहते हैं-(यह सुनते ही) मेरे स्वामी तुरंत उठ गये। इनकी लीला अगम्य और अपार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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