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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री(168) (ब्राह्मण कहता है-) ‘हे स्वामी! जो-जो आपकी शरण आये, वे सब परम पवित्र हो गये। आपका एक ही नाम (आपके नाम का एक बार उच्चारण) ही महान् पतितों के भी कल का उद्धार करनेवाला, पापों को भस्म करनेवाला तथा कठिन-से-कठिन दुःख को विस्मृत करा देनेवाला है। मेरे समान अनाथ कौन था; किंतु आपके दर्शन से मैं सनाथ हो गया, आपका दर्शन ही नेत्रों को शीतल करनेवाला है। आप भक्तों का मंगल करने, पृथ्वी का भार दूर करने एवं (अपने भक्तों को) जन्म-जन्मान्तर से छुड़ा देने के लिये अवतार धारण करते हैं। दीनबन्धु! आप अशरण को त्राण देनेवाले हैं, सुखमयी यशोदाजी के लिये आपने यह अवतार धारण किया है। आप सबके चित्त के प्रेम-भाव का आदर करते हैं, सबके मन की बात जानते हैं।’ सूरदासजी कहते हैं-मेरे मनभावन आप ही हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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