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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग-रामकली(144) श्रीयशोदाजी कन्हाई को यही सिखला रही हैं कि ‘कन्हाई, सुनो अब तुम बड़े हो गये।’ यों कहकर उनका स्तन पीना छुड़ाती हैं। (वे कहती हैं-) व्रज के बालक तुम्हें स्तन पीते देखकर हँसते हैं, तुम्हें लज्जा नहीं आती? तुम्हारे ये अच्छे सुन्दर दाँत बिगड़ जायँगे, इससे तुम्हें बताकर समझा रही हूँ। अब भी तुम (यह स्वभाव) छोड़ दो, मेरा कहना मानो; ऐसी बात (हठ) अच्छी नहीं लगती। सूरदासजी कहते हैं कि यह सुनकर श्यामसुन्दर माता के अंचल में (दूध पीने के लिये) मुख छिपाते हुए मुसकरा पड़े। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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