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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(4) देवताओं का उद्यार करने के लिये और असुरों का संहार करने के लिये ये अन्तर्यामी त्रिभुवननाथ श्रीहरि गोकुल में आकर प्रकट हुए हैं। श्रीवसुदेवजी इन्हें मस्तक पर रखकर ले आये और व्रजराज श्रीनन्दजी के घर पहुँचा गये। माता यशोदाजी ने जाग्रत होनेपर जब पुत्र का मुख देखा, तब उनका अंग-अंग पुलकित हो गया, हृदय में आनन्द समाता नहीं था, कंट गद्गद् हो उठा, बोलातक नहीं जाता था, अत्यन्त हर्षित होकर उन्होंने श्रीनन्दजी को बुलवाया कि स्वामी! पधारो। देवता प्रसन्न हो गये हैं, आपके पुत्र हुआ है, शीघ्र आकर उसका मुख देखो। श्रीनन्दरायजी दौड़कर पहुँचे, पुत्र का मुख देखकर उन्हें जो आनन्द हुआ, वह मुझसे वर्णन नहीं किया जाता है। सूरदासजी कहते हैं कि माता यशोदा! मैंने पहले ही (धाय के रूप में) दूध पिलाने की न्योछावर माँगी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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