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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी(316) (मैया कहती है-) ‘मेरे लाल! बड़ा अच्छा दूध है, पी लो।’ गरम लगता है, इससे मुख से छूते नहीं-माता फूँक देकर शीतल करती है। (वह कहती है-) ‘मोहन! इसे अभी-अभी तुम्हारे ही लिये बनाकर (भली प्रकार) उबालकर रखा है। मेरे कुँवर कन्हाई! तुम पीओ और मैं अपनी आँखों (तुम्हें दूध पीते) देखूँ। वह केवल धौरी का दूध है, शरीर के लिये अत्यन्त लाभकारी है।’ सूरदासजी कहते हैं-श्यामसुन्दर दूध पीने लगे; किंतु वह अत्यन्त गरम था, इससे गिरा दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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