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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ(147) (माता कहती हैं-) ‘प्यारे लाल! संध्या हो गयी, अब घर चले आओ। दौड़ते क्यों हो, कहीं चोट लग जायगी, सबेरे फिर खेलना।’ (यह कहकर) स्वयं जाकर भुजा पकड़कर माता मोहन को ले आयी। उनके शरीर में धूलि लिपट रही थी, शरीर की धूलि झाड़कर तेल लगाया और गरम जल ले आकर स्नान कराया। कोमल वस्त्र से श्याम का शरीर पोंछकर तब उन्हें घर के भीतर ले गयी। सूरदासजी कहते हैं-(मैया ने कहा-) ‘लाल! कुछ ब्यालू (सायंकालीन भोजन) कर लो, फिर सुला दूँ।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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