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जागियै गोपाल लाल, प्रगट भई अंसु-माल,
मिट्यौ अंधकाल, उठौ जननी-सुखदाई।
मुकुलित भए कमल-जाल, कुमुद-बृंदबन बिहाल,
मेटहु जंजाल, त्रिबिध ताप तन नसाई।।
ठाढैं सब सखा द्वार, कहत नंद के कुमार,
टेरत हैं बार-बार, आइयै कन्हाई।
गैयनि भइ बड़ी बार, भरि-भरि पय थननि भार,
बछरा-बन करैं पुकार, तुम बिनु जदुराई।।
तातैं यह अटक परी, दुहन-काल सौंह करी,
आवहु उठि क्यों नह हरी, बोलत बल भाई।
मुख तैं पट झटकि डारि, चंद-बदन दियौ उघारि,
जसुमति बलिहारि वारि, लोचन-सुखदाई।।