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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ(25) (कोई गोपिका कहती है-यशोदाजी!) ‘तनिक गोपाल को तुम मुझे दे दो! मैं इसके कमलसुख को एक बार भली प्रकार देख लूँ, इसके बाद तुम गोद में लेना।’ (गोद में लेकर कहती हैं-) ‘इसके कर तथा चरण कमल के समान अत्यन्त कोमल हैं, अधर, दँतुलियाँ और नासिका बहुत शोभा दे रही है, मस्तक पर यह लटकन (केशों में गूँथे मोती) तथा गले में कौस्तुभमणि ऐसी छटा दे रहे हैं कि इनपर करोड़ों कामदेव भी न्योछावर हो गये। सखी! मैं रात-दिन सोचती रहती हूँ कि यह सुख (जो कन्हार्ह के आनेपर मिला है) मैंने और कभी नहीं पाया। यह तो वेदो की सम्पत्ति और सनकादि ऋषियों का सर्वस्व है, जिसे तुमने बड़े सौभाग्य से पा लिया है। इसके रूप ही जगत् के नेत्र हैं (जगत् के नेत्रों की सफलता इसके रूप का दर्शन करना ही है)। करोड़ो सूर्य-चन्द्र (इस रूप को देखकर) लज्जित हो जाते है।।’ सूरदासजी कहते है।-माता यशोदा अपने लालपर बलि-बलि जाती हैं। (उनका लाल) गोपियों का प्राणधन और पूतना का शत्रु है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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