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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नट(208) (व्रजरानी कहती हैं-) ‘सखी! मेरा लाल किसका दही चुराता है? दैव का दिया हुआ मेरे घर ही बहुत (गोरस) है, दूसरे लोग ही उसे पीते-खाते हैं। हो ग्या गया जो यह तुम्हारे घर गया और भोलेपन से थोड़ा-सा (दूध या दही) लेकर पी लिया। इतनी-सी बातपर गरजती क्यों हो? मानो घोड़े पर चढ़ी आयी हो।’ सूरदासजी कहते हैं-(वह ग्वानिली बोली-) ‘मोहन मक्खन खा जाते हैं, सब मट्ठा गिरा देते हैं और फिर बर्तन भी फोड़ देते हैं, यह गोपी तो प्रेमिका है। (उलाहना देने के बहाने यह) उन अलबेले के साथ स्नेह का नाता जोड़ना चाहती है (यशोदाजी फटकार इसे बुरी नहीं लगती!)।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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