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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग केदारौ(270) सूरदासजी कहते हैं-(समझाते हुए) यशोदाजी कह रही हैं-‘मेरे प्यारे कन्हाई! तुम अपने ही आँगन में खेलो। अपने साथ के सब सखाओं को बुला लो, मेरा कहना कभी टाला मत करो। व्रज की सब स्त्रियाँ तुम्हें चोर कहती हैं, इससे मेरा मुख लज्जा से संकुचित हो जाता है। परंतु आज मुझसे बलराम कहते थे कि वे सब तुम्हें झूठ-मूठ बदनाम करती हैं। जब मुझे क्रोध आता है, तब मैं तुम्हें दास के समान डाँटती हूँ, बाँधती हूँ और मार भी देती हूँ। गोपियाँ ताली बजाकर (चिढ़ाकर) हँसती हैं, अतः पुत्र! यह चोर नाम तो किसी प्रकार बदल (ही) डालो।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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