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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(167) (ब्राह्मण की समझ में बात आ गयी। वह बोला-) ‘प्रभो! मेरा जीवन आज सफल हो गया। यह गोकुल धन्य है, श्रीनन्दजी और यशोदाजी धन्य हैं, जिनके यहाँ साक्षात् श्रीहरि ने अवतार लिया, मेरे समस्त पुण्यों एवं उत्तम कर्मों का फल आज प्रकट हुआ जो दीनबन्धु प्रभु ने मुझे दर्शन दिया।’ (इस प्रकार कहता) ब्राह्मण आनन्दमग्न होकर बार-बार श्रीनन्दजी के आँगन में लोट रहा है। (वह श्यामसुन्दर से प्रार्थना करता है) ‘प्रभो! बिना जाने (अज्ञानवश) मैंने अपराध किया (आपका अपमान किया, मुझे क्षमा करें)। पता नहीं किस वेश से (मेरे किस साधन से) आप जीते गये (मुझपर प्रसन्न हुए)। सूरदासजी कहते हैं कि मेरे प्रभु ने भक्त के प्रेमवश श्रीयशोदाजी के घर में यह आनन्द-क्रीड़ा की है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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