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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ(309) आज मोहन वन से सजे हुए आ रहे हैं। अनेक रंगों के पुष्पों की माला श्रीनन्दनन्दन के वक्षःस्थल पर शोभा दे रही है। साथ में गोपकुमार तथा गायों का समूह लिये अनेक प्रकार की चाल चलकर कुतूहल की सृष्टि करते आते हैं। कोई गाता है, कोई समय पर तान तोड़ रहा है, कोई उछलता है और कोई हाथ से तालियाँ बजाता है। गायें बछड़ों का स्मरण करके उनके लिये प्रेम से रँभा रही है और प्रेम से उमंग में भरकर थनो से दूध टपका रही हैं। श्रीयशोदाजी हर्षित होकर पुकार उठीं-‘कन्हाई गायें चराकर आ रहा है।’ (उनके) इतना कहते ही मोहन आ गये, माता दौड़कर (उठाकर) उन्हें हृदय से लगा रही हैं। सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दर के (वन में किये) काम गोपबालक स्पष्ट वर्णन करके यशोदाजी को सुनाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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