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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(124) व्रजराजकुमार, जागो! देखो, कमलपुष्प विकसित हो गये, कुमुदिनियों का समूह संकुचित हो गया, भौंरे लताओं को भूल गये (उन्हें छोड़कर कमलों पर मँडराने लगे)। मुर्गे और दूसरे पक्षियों का शब्द सुनो, जो वनराजि में बोल रहे हैं; गोष्ठोें में गौएँ रँभाने लगी हैं और बछड़ों के लिये दौड़ रही हैं। चन्द्रमा मलिन हो गया, सूर्य का प्रकाश फैल गया, स्त्री-पुरुष (प्रातःकालीन स्तुति) गान कर रहे हैं। सूरदासजी कहते हैं कि कमल-समान हाथोंवाले श्यामसुन्दर प्रातःकाल हो गया, अब उठो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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