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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(240) (गोपी कहती है-) ‘यशोदाजी! (तनिक) पुत्र की ओर (तो) देखो। इस रसमयी (खेलनेयोग्य) अवस्था के बालक पर इतना कठोर क्रोध क्या (उचित है)? यह दही-चोर, बार-बार तुम्हारी ओर देखकर मुख झुका लेता है मानो प्रातः काल सूर्य की किरणों का स्पर्श होने से कुमुदिनी संकुचित हो गयी हो। भय के कारण नेत्र अत्यन्त चंचल हो रहे हैं और आँसू की बूँदों से युक्त उनके किनारे शोभित हो रहे हैं, मानो (दो) मछलियों को बंसी में फँसाकर जल में उन्हें हिलाया जा रहा हो। वक्षःस्थल पर वेगपूर्वक गिरती आँसू की बूँदें अत्यन्त शोभा दे रही हैं, मानो सुन्दर हृदय पर (धारण की हुई) मोतियों की माला ही तागे के टूट जाने से गिर रही हो। जगत् के वन्दनीय श्रीनन्दनन्दन आज आँखों के कोनों में आँसू भर रहे हैं। ‘सूरदासजी कहते हैं कि-‘मुझे आनन्द देने के लिये नन्दलाल! अपने इस दासकी ओर (एक बार) देख तो लो।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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