विषय सूची
श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नटनारायनी(242) (गोपी कह रही है-) ‘देखो सखी, देखो तो श्यामसुन्दर क्रन्दन कर रहे हैं। यशोदाजी! इन्हें आँगन में लोटने से बचाओ। (देखो न!) इनका शरीर धूल से मटमैला हो रहा है। कभी कुछ क्षण मुख ढँककर सिसकारी लेकर रोते हैं, कभी क्ष्ज्ञणभर चुप हा जाते हैं। इनकी ऐसी शोभा हो रही है मानो कमल पर से भौंरे उड़ना चाहते हों किंतु पंख की चोट कहीं दलों को न लगे, इससे संकुचित हो रहे हैं। नेत्र चंचल हैं, पलकें आँसू से भरी हैं, जिनकी कुछ बूँदें बार-बार ढुलक पड़ती हैं मानो थोड़े जल के ऊपर दो सीप देखकर मछलियाँ व्याकुल हो रही हैं। जब छड़ी के भय से तुम्हारी ओर देखते हैं, तब पीताम्बर में लिपट जाते (संकुचित हो जाते) हैं।’ सूरदासजी कहते हैं-‘मेरे इन स्वामी पर तो प्राण न्योछावर कर देना चाहिये। ये (मक्खन खाते हैं तो) भले ही खायँ (इन पर रोष करना तो अनुचित ही है)।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |