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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री(241) सूरदासजी कहते हैं-(कोई गोपी समझा रही है-) ‘कमल-लोचन की ओर देखो तो! ये चाहे साह (चोरी न करनेवाले) हों या चोर हों, इनके मुख की शोभा पर करोड़ों चन्द्रों को न्योछावर कर दूँ। इनके दोनों नेत्रों के किनारे उज्ज्वल, श्याम तथा अरुण दीख पड़ रहे हैं, मानो चकोर (इस मुखचन्द्र का) अमृत पीने के लिये पास बैठे हों। यशोदाजी! इनपर क्यों क्रोध करती हो? यह तुम्हारी कौन सी समझदारी है? अरे श्यामसुन्दर अभी मनमोहन बालक हैं, कोई तरुण या किशोर तो हैं नहीं।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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