विषय सूची
श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग-बिलावल(85) जैसे-जैसे मथानी की घरघराहट होती है, वैसे-वैसे ही मोहन नाच रहे हैं। वैसे ही (कटिकी) किंकिझाी और चरणों के नूपुर दोनों के बजने का स्वर स्वाभाविक रूप से मिल गया है। (गले में) सोने का कठला है, मणि और मोतियों की माला के बीच में बघनखा पिरोया है। यह छटा तो देखते ही बनती है, इसका वर्णन नहीं हो सकता; जिसके साथ इसकी उपमा दी जा सके, ऐसी कोई वस्तु नहीं है। श्रीनन्दनन्दन का श्रीमुख देख-देखकर देवता तथा मनुष्य सभी आनन्दित हो रहे हैं। सूरदासजी कहते हैं-(अपनी अंगकान्ति से श्यामसुन्दर) भवन के अन्धकार को नष्ट कर चुके हैं (उन्होंने तीनों लोकों के तमस को नष्ट कर दिया है)। मैया यशोदा उनपर बलिहारी जाती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |