विषय सूची
श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नट(138) (माता कहती हैं-) ‘मोहन! मेरा मान मनाया (बहुत दुलारा) लाल है। मैं इस नन्द-नन्दन की बलिहारी जाती हूँ, लाल! तनिक हँसकर इधर तो देखो। काला कह-कहकर दाऊ चिढ़ाता है? तुम्हें खेलने से रोकता है? वह तो सचमुच बड़ा ऊधमी है, तुम्हारा शरीर तो इन्द्र-नीलमणि से भी सुन्दर है, भला, तुम्हारा सेवक दाऊ तुम्हें क्या कहेगा। अपनी गायों को छाँटकर अलग कर लो, वह अपनी गायों के झुण्ड अलग हाँक ले? मेरा पुत्र तो सबका सरदार है, मेरा कन्हाई बहुत बड़ा है; तुम जाकर क्रीड़ा करो, यह तो अपना गाँव है (यहाँ तुम्हें कोई कुछ नहीं कर सकता)। सूरदासजी कहते हैं-प्रभो! मैं भी द्वारपर खड़ा आपका अत्यन्त निर्मल यश गा रहा हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |