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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(256) (श्रीबलरामजी कहते हैं-) ‘यशोदाजी! तुमसे (कन्हाई) बाँधा कैसे गया? तुम्हारे चित्त में तनिक भी पीड़ा नहीं हुई? यह तुम्हारी इसी कोख से तो उत्पन्न हुआ है। जिसका माहात्म्य शंकर और ब्रह्माजी भी नहीं जानते, (वही तुम्हारे प्रेमवश) यहाँ गायों के साथ दौड़ता है, इसलिये तुम इसे पहचानती नहीं हो, पता नहीं किस पुण्य से तुमने इसे पाया है। हुआ क्या जो घर के लड़के ने चोरी से मक्खन खा लिया?’ इतनी बात कहकर अपनी बाँहें उभारते हुए बलराम क्रोधपूर्वक दौड़ पड़े। अपने हाथों उन्होंने सब बन्धन खोल दिये और प्रेम से (छोटे भाई को) हृदय से लगा लिया। सूरदासजी कहते हैं कि सुन्दर मनोहर बातें कह-कहकर अपने छोटे भाई की पीड़ा उन्होंने भुलवा दी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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