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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी(307) श्रीकृष्णचन्द्र गायों के पीछे-पीछे आ रहे हैं। मयूरपिच्छ का मुकुट है, मकर के आकारवाले कुण्डल हैं, बड़े-बड़े नेत्र कमल से भी अधिक सुन्दर हैं, अभी ओष्ठों पर वंशी रखना सीख ही रहे हैं, वनमाला पहिने हैं तथा पीताम्बर की कछनी बाँधे हैं। सब गोपबालक अनेक रंगों के हैं, वे करोड़ों कामदेवों की शोभा को भी पीछे किये (उससे भी अधिक सुन्दर) हैं। श्यामसुन्दर व्रजपुरी में आ पहुँचे, श्रीबलराम और मोहन भली प्रकार अपने घर चले। सूरदास के स्वामी से दोनों माताएँ (यशोदाजी और रोहिणी जी) मिलीं और मुख से ‘मेरे लाल!’ कहती हुई बलैयाँ लेने लगीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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