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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(39) (माता कहती है-) ‘मेरे नन्हें गोपाल लाल! तू झटपट बड़ा क्यों नहीं हो जाता। पता नहीं कब तू इस मुख से हँसकर मधुर वाणी से मुझे ‘मैया’ कहेगा-मेरे हृदय में यही अत्यन्त उत्कण्ठा है। यदि इसे जगदीश्वर पूरा कर दें कि मेरे देखते हुए कन्हाई इस आँगन में पृथ्वी पर अपने दोनों चरण रखे (पैरों चलने लगे)। बड़े भाई बलराम के साथ वह आनन्दपूर्वक उमंग में खेले और मैं आँखों से यह देखकर सुखी होऊँ। क्षण-क्षण में भूखा समझकर दूध पिलाने के लिये मैं हँस-हँसर पास बुलाऊँ।’ सूरदाजी कहते हैं कि शंकरजी, ब्रह्माजी, सनकादि ऋषि तथा मुनिगण ध्यान में भी जिसे नहीं पाते, उसी पुत्र के प्रेम से माता यशोदा मन में नाना प्रकार की अभिलाषा बढ़ाया करती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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