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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठ(255) (श्रीबलराजी कहते जाते हैं-) ‘यशोदा मैया! बालक कन्हाई को तूने (यह) त्रास क्यों दी? मेरे इस मनमोहन भाई ने कितना दही पी लिया? मैं तो घर नहीं था, तूने इसे सटासट छड़ी से मार दिया और रस्सी से इसके हाथ बाँध दिये-यह देखकर मैं कैसे जीवित रहता? यह गोपाल तो सबका प्यारा है, जिसका मुझे भी गर्व है, तूने उसी को पीटा, यह कितनी अनुचित बात है। माता को छोड़कर कोई दूसरा होता तो उसे भी पता लग जाता, यदि अँगुी से भी वह (श्याम को) छू लेता तो जा कैसे पाता? मेरे भाई को तूने कसकर बाँध दिया है, इसके नेत्रों से आँसू झर रहे हैं; श्यामसुन्दर से भी तुझे दूध, दही और मक्खन प्यारा है?’ सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दर गिरिधर हैं और बलरामजी पृथ्वी को धारण करनेवाले (साक्षात् शेष) हैं, इन दोनों भाइयों की यह छबि मेरे हृदय में सदा स्थिर बसी रहे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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