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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 89-153
यहाँ से आगे भौगोलिक सूत्र यमुना के पर्व की ओर मुड़ता है। इनमें एक तो मानसरोवर को जाने वाले उस द्वार का उल्लेख है, जिसे परशुराम ने पहाड़ के मध्य में कल्पित किया था। ‘मेघदूत’ में इसे ही ‘क्रौंचरन्ध्र’ कहा गया है। यह काली-कर्णाली के रास्ते अल्मोड़ा होकर लीपूलेख दर्रे से कैलास की ओर जाने वाला मार्ग होना चाहिए। हिमालय की तराई से नीचे उतरकर एक पुराना मार्ग सरयू के उत्तर प्राचीन श्रावस्ती होता हुआ उत्तरी विदेह में जा निकलता था। उसका यहाँ स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हुए उसे वातिकषंड कहा गया है। हमारी समझ में विदेह (वर्तमान मुजफ्फरपुर) के उत्तर में बेतिया-चम्पारन का घना जंगल ही वातिकषंड होना चाहिए। इसी प्रसंग मे यवक्रीत मुनि के उज्जानक तीर्थ, कुशवान ह्रद, रुक्मिणी आश्रम और भृगुतुंग महागिरि का उल्लेख है, जिनकी ठीक-ठीक पहचान अविदित है। यमुना की दो शाखा नदीजला और उपजला देहरादून-अम्बाला जिलों में यमुना की उपरली धारा में मिलने वाली छोटी नदियाँ होनी चाहिए। वहीं उशीनरी राजा का स्थान कहा गया है, जिसने शरणागत कपोत की रक्षा के लिए अपने शरीर का मांस काटकर तुला पर चढ़ा दिया था। यह श्येनकपोतीय आख्यान रोचनात्मक ढंग से यहाँ कहा गया है। यही कहानी शिवि जातक के रूप में प्रसिद्ध थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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