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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 12-22
यहाँ महाभारतकार ने जरा नाम की राक्षसी से जरासन्ध की उत्पत्ति का सम्बन्ध बताया है। यह मांस और शोणित का भोजन करने वाली नरभक्षिका कोई देवी थी, जिसकी पूजा मगध की निषाद-जाति के लोग करते थे। अवश्य मगध जनपद की इस देवी की कहानी बौद्ध साहित्य में भी आ गई। वहाँ इसे हारीती कहा गया है। वह पहले बच्चों को खाने वाली राक्षसी थी। पीछे बुद्ध ने उसके एक बच्चे को छिपाकर उसमें मातृत्व का प्रेम जाग्रत किया और वह बच्चों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजी जाने लगी। यहाँ भी उसने नवजात शिशु के शरीर के दो टुकड़ों को अपने मन्त्र बल से एक में जोड़कर उसे राजा को सौंप दिया और स्वयं मातृत्व की भावना से भरकर अन्तर्धान हो गई। मगध में उसका महोत्सव मनाया जाने लगा और लोग उसका चित्र अपने घर की दीवारों पर लिखने लगे। हारीती के समान यह भी बहुत पुत्रों की माता मानी जाने लगी। मगध की जरा देवी की भाँति गान्धार जनपद में भी भीमा नाम की भयंकर देवी थी। उसकी कहानी भी बौद्ध धर्म के साथ जुड़ गई और पांच सौ यक्ष पुत्रों की माता हारीती गांधार देश की सबसे बड़ी देवी बन गई। आगे वन-पर्व में भीमा देवी की यात्रा का उल्लेख आया है। आज तक भीमा-देवी की यात्रा और उसका मंदिर सारे पंजाब में प्रसिद्ध है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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