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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 5
11. देवर्षि नारद का उपदेश
कृष्ण के उस कथन को स्वीकार कर मय ने युधिष्ठिर की स्वीकृति से विमानाकृति वाली एक सभा की नींव डाली। खाण्डवप्रस्थ में कुछ दिन सुख से रहकर कृष्ण भी पाण्डवों से विदा लेकर द्वारका चले गए। उनके चलते समय युधिष्ठिर ने दारुक सारथी को हटाकर स्वयं कृष्ण का रथ हांका और अर्जुन ने उनके ऊपर श्वेत चमर डुलाया। इधर चौदह महीने तक परिश्रम करके मय ने एक लम्बी-चौड़ी सभा का निर्माण किया, जो बहुत ही चमकती थी। उसके चारों ओर का घेरा दस सहस्र किष्कु (8,750 गज) था। न तो देवों की सुधर्मा-सभा और न अन्धक-वृष्णियों की सभा ही ऐसी रूप सम्पन्न थी। उसमें आठ सहस्र किंकर या गुह्यक चारों ओर उत्कीर्ण थे, जो अपने सीपी-जैसे कानों वाले मस्तकों पर मानो उसे उठाए हुए थे। उसमें अनेक पत्रलता और कमल के फूलों के कटाव थे। उसके चारों ओर पुष्पवन्त महाद्रुम, सुगन्धित आराम और पुष्करिणियां बनाई गई थीं। तैयार हो जाने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने विधिपूर्वक उसका प्रवेश मंगल किया। अनेक ऋषि और जनपदेश्वर उसमें सम्मिलित हुए। वहाँ अनेक क्षत्रिय राजकुमार अर्जुन से धनुर्वेद की शिक्षा ग्रहण करते थे और नृत्य-गीत-वादित्र का समारोह रहता था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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