श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी22. विद्याव्यासंगी निमाई
अध्यापक उनमें से बहुतों का नाम-पता भी नहीं जानते। वे पाठ सुनकर चले जाते हैं। आज भी काशी आदि बड़े-बड़े स्थानों की प्राचीन ढंग की पाठशालाओं में ऐसा ही रिवाज है। निमाई भी पाठशाला में जाकर पाठ सुन आते। सार्वभौम महाशय का उन दिनों इनके साथ कोई विशेष परिचय नहीं हुआ, किन्तु इनकी चंचलता, चपलता, वाक्पटुता और लोकोत्तर मेधा के कारण मुख्य-मुख्य छात्र इनसे बहुत स्नेह करने लगे। वे यह भी जानने लगे कि न्याय-जैसे गम्भीर विषय को निमाई भलीभाँति समझता है। वह अन्य बहुत-से छात्रों की भाँति केवल सुनकर ही नहीं चला जाता। पीछे जिनका हम उल्लेख कर चुके हैं वे ही ‘दीधिति’ महाग्रन्थ के रचयिता पण्डित रघुनाथ उन दिनों सभी छात्रों में सर्वश्रेष्ठ समझे जाते थे। उन्हें स्वयं भी अपनी तर्कशक्ति और विलक्षण बुद्धि का भरोसा था। उनकी उस समय से ही यह प्रबल वासना थी कि मैं भारतवर्ष में एक प्रसिद्ध नैयायिक बनूँ। सम्पूर्ण देश में मेरी विलक्षण बुद्धि की ख्याति हो जाय। जो जैसे होनहार होते हैं, उनकी पहले से ही वैसी भावना होती है। रघुनाथ की भी सर्वमान्य बनने की पहले से ही वासना थी। रघुनाथ के साथ निमाई का परिचय पहले से ही हो चुका था। उनके साथ इनकी गाढ़ी मैत्री भी हो चुकी थी। निमाई कभी-कभी रघुनाथ के निवासस्थान पर भी जाया करते और उनसे न्याय सम्बन्धी बातें किया भी करते थे। इनकी बातचीत से ही रघुनाथ समझ गये कि यह भी कोई होनहार नैयायिक हैं। वे समझते थे कि मुझसे न्याय में स्पर्धा रखने वाला नवद्वीप में दूसरा कोई छात्र नहीं है। निमाई से बातचीत करते-करते कभी उन्हें खटकने लगता कि यदि यह इसी प्रकार परिश्रम करता रहा, तो सम्भवतया मुझसे बढ़ सकता है। किन्तु उन्हें अपनी बुद्धि पर पूरा भरोसा था, इसलिये इस विचार को वे अपने हृदय में जमने नहीं देते थे। एक दिन रघुनाथ को गुरु ने कोई ‘पंक्ति’ लगाने को दी। वह ‘पंक्ति’ रघुनाथ की समझ में ही नहीं आयी। वे दिनभर चुपचाप बैठे हुए उसी पंक्ति को सोचते रहे। तीसरे पहर जाकर वह पंक्ति रघुनाथ की समझ में आयी, उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। गुरु को बताकर वे अपने स्थान पर भोजन बनाने चले गये। निमाई का स्वभाव तो चंचल था ही, रघुनाथ को पाठशाला में न देखकर आप उनके निवासस्थान पर पहुँचे। वहाँ जाकर देखा रघुनाथ भोजन बना रहे हैं। लकड़ी गीली है। रघुनाथ बार-बार फूँकते हैं, अग्नि जलती ही नहीं। धुएँ के कारण उनकी आँखें लाल पड़ गयी हैं और उनमें से पानी निकल रहा है। हँसते हुए निमाई ने रघुनाथ के चैके में प्रवेश किया। प्रेम के साथ हँसते हुए बोले- ‘पण्डित महाशय! आज असमय में रन्धन क्यों हो रहा है।’ |