श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी146. प्रभु का पुरी में भक्तों से पुनर्मिलन
कृष्ण कहो, राम कहो, हरि भजो बावरे। प्रभु की मधुर वाणी को सुनकर कुत्ता प्रेमपूर्वक पूँछ हिलाता हुआ अपनी भाषा में राम, कृष्ण, हरि आदि भगवान के सुमधुर नामों का कीर्तन कर रहा था। शिवानन्द सेन उस कुत्ते को प्रभु के पास बैठ देखकर परम आश्चर्य करे लगे। वह कुत्ता पहले सभी जगन्नाथपुरी में नहीं आया था और न उसने प्रभु का निवास स्थान देखा था, फिर यह अकेला ही यहाँ कैसे आ गया? सेन महाशय समझ गये कि यह कोई पूर्व जन्म का सिद्ध हैं, किसी कारणवश इसे कुत्ते की योनि प्राप्त हो गयी है। तभी तो प्रभु इसे इतना अधिक प्यार कर रहे हैं, यह सोचकर उन्होंने कुत्ते को साष्टांग प्रणाम किया। कुत्ता पूँछ हिलाता हुआ वहाँ से कही अन्यत्र चला गया। इसके अनन्तर फिर किसी ने उस कुत्ते को नहीं देखा। महाप्रभु सभी भक्तों से मिले। भक्तों की पत्नियों ने प्रभु को दूरे से ही प्रणाम किया। प्रभु स्त्रियों की ओर न तो कभी देखते थे, न उनका स्पर्श करते थे और न स्त्रियों के सम्बन्ध की बातें ही सुनते थे। स्त्रियों का प्रसंग छिड़ते ही प्रभु अत्यन्त ही संकुचित हो जाते और प्रसंग को जल्दी-से-जल्दी समाप्त कर देते। |