श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी142. श्री सनातन को शास्त्रीय शिक्षा
ब्रह्मा जी के वरदान से वे सभी लोकों में जा-आ सकते थे। सत्ययुग के मनुष्य आज कल से चौगुने लम्बे होते हैं। उनके एक रेवती नाम की कन्या थी, वह साधारण लड़कियों की अपेक्षा कुछ अधिक लम्बी थी। बहुत खोजने पर भी महाराज को उसके योग्य कोई वर नहीं मिला। तब उन्होंने सोचा-चलो, ब्रह्मा जी से ही कुछ पूछ आवें कि हम इस लड़की का विवाह किसके साथ करें। दो-चार राजकुमार अच्छे तो हैं, उनमें से कौन-सा सर्वश्रेष्ठ होगा, इस बात का निर्णय ब्रह्मा जी से ही करा लावें। यह सोचकर वे अपनी लड़की को साथ लेकर ब्रह्मलोक में पहुँचे। उस समय ब्रह्मा जी अनेक देवता, ऋषि और अन्य लोंको के देवों से घिरे हुए- 'हाहा, हूहू' का गान सुन रहे थे। महाराज रैवत भी प्रणाम करके चुपचाप एक ओर बैठ गये। आधी घड़ी के पश्चात् गायन समाप्त हो गया, तब पितामह ब्रह्मा जी ने हंसते हुए राजा रैवत से पूछा- 'कहो, भाई! कैसे आना हुआ?' हाथ जोड़े हुए दीन भाव से महाराज ने कहा- 'भगवन! आपके श्रीचरणों के दर्शनों के निमित्त चला आया।' सोचा था, इस लड़की के पति के सम्बन्ध में आप से पूछूंगा। आप जिनके लिये आज्ञा करेंगे, उसे ही दे दूंगा।' मुसकराकर भगवान ब्रह्मादेव जी ने कहा- 'तुम्हीं बताओ, तुम्हें कौन-सा राजकुमार बहुत पसंद है?' कुछ सोचकर महाराज ने कहा- 'प्रभो! अमुक राजकुमार मुझे सबसे अधिक अच्छा लगता है, फिर आप जिसके लिये आज्ञा करेंगे उसे ही इसे दूँगा। आपकी आज्ञा ही लेने तो आया हूँ।' इतना सुनते ही भगवान ब्रह्मा जी अपनी सफेद दाढ़ी को हिलाते हुए बड़े ही जोरों से हंसने लगे और बोले- 'राजन! जिस राजकुमार का तुम नाम ले रहे हो, वह कुल तो कबका नष्ट हो गया। अब तो उन वंशों का नाम-निशान भी नहीं रहा। तुम्हारी पुरी को अन्य राजाओं ने अपनी राजधानी बना लिया। अब तो वहाँ कलियुग आ रहा है। तुम इसी समय जाओ, व्रज में भगवान श्रीकृष्ण जी के बड़े भाई शेष जी के अवतार बलराम जी अवतीर्ण हुए हैं, जाकर इस कन्या को उन्हें ही दे दो, वे सब ठीक कर लेंगे।' |