श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी127. प्रभु के वृन्दावन जाने से भक्तों को विरह
महाप्रभु ने एक सुन्दर-से वकुलवृक्ष के नीचे अपना आसन लगाया। राय रामानन्द जी उसी समय कटकाधिप महाराज प्रतापरुद्र जी के समीप गये और वहाँ जाकर उन्होंने प्रभु के शुभागमन का समाचार सुनाया। इस सुखद समाचार के सुनते ही महाराज के हर्ष का ठिकाना नहीं रहा। वे अस्त-व्यस्त-भाव से प्रेम में विभोर हुए प्रभु के दर्शनों के लिये चले। उनके पीछे उनके सभी मुख्य-मुख्य राज-कर्मचारी भी प्रभुकी चरण-वन्दना करने के निमित्त चले। महाराज अति दीन-वेश से आँखों में आंसू भरे हुए अत्यन्त ही नम्रता के साथ नंगे ही पांवों प्रभु के समीप जा रहे थे। उन्होंने दूर ही पालकी छोड़ दी थी और पैदल ही प्रभु के समीप पहुँचे। पहुँचते ही वे अधीर होकर प्रभु के पादपद्मों में गिर पड़े। महाराजको अपने पैरों में पड़े देखकर प्रभु जल्दीसे उठकर खड़े हो गये और उन्हें जोरों से आलिंगन करने लगे। महाप्रभु का प्रेमालिंगन पाकर महाराज बेसुध हो गये, प्रभु के नेत्रों से निरन्तर प्रेमाश्रु निकल रहे थे, वे अश्रु उन महाभाग महाराज के सभी वस्त्रों को भिगो रहे थे। उन वस्त्रों का भी सौभाग्य था। बड़ी देर तक यह करुण दृश्य ज्यों-का-त्यों ही बना रहा। फिर महाप्रभु ने महाराज को प्रेमपूर्वक अपने समीप बैठाया और उनके शरीर, राज्य तथा कुटुम्ब-परिवार की कुशल-क्षेम पूछी। बहुत देर तक महाराज प्रभु के समीप बैठे रहे। महाराज के प्रणाम कर लेने के अनन्तर क्रमशः सभी बड़े-बड़े राज-कर्मचारियों ने प्रभु के पादपद्मों में प्रणाम किया और प्रभु-कृपा की याचना की। महाप्रभु ने उन सभी पर कृपा की और वे सभी से प्रेमपूर्वक कुछ-न-कुछ बातें करते रहे। महाराज ने प्रभु की यात्रा के पथ में सर्वत्र ही उनके ठहरने तथा नियत समय पर जगन्नाथ जी के प्रसाद पहुँचाने का प्रबन्ध कर दिया। बहुत-से आदमी पहले से ही तैयारी करने के लिये भेजे गये कि जहां-जहाँ प्रभुका ठहरना हो, वहाँ वासस्थान तथा भोजनादि का सभी सुव्यवस्थित प्रबन्ध हो सके। महाप्रभु को पहुँचाने के लिये उन्होंने अपने हरिचन्दनेश्वर और मंगराज नामक दो राजमन्त्रियों को राज्यों की सीमा पार करने के निमित्त प्रभु के साथ कर दिये। महाप्रभु की आज्ञा पाकर महाराज अपनी राजधानी को लौट गये। |