श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी118. श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा
प्रभु के उद्दण्ड नृत्य से रथ का चलना बंद हो गया। भक्तगण महाप्रभु की ऐसी विचित्र अवस्था देखकर भय के कारण काँपने लगे। दर्शनार्थी महाप्रभु के नृत्य को देखने के लिये टूट ही पड़ते थे। नित्यानन्द जी को बड़ी घबड़ाहट होने लगी। लोगों की भीड़ प्रभु के ऊपर को ही चली आ रही थी। तब नित्यानन्द जी ने अपने भक्तों की एक गोल मण्डली बना ली और उसके भीतर प्रभु को ले लिया। महाराज ने भी उसी समय अपने नौकरों को फौरन आज्ञा दी कि इस भक्त मण्डली के गोल को तुम लोग चारों ओर से घेर लो, जिससे और लोग इस मण्डली को धक्का न दे सकें! महाराज की आज्ञा उसी समय पालन की गयी और भक्त मण्डली की रक्षा का प्रबन्ध राजकर्मचारियों ने उसी समय कर दिया। महाराज प्रतापरुद्र भी अपने मन्त्री श्रीहरिचन्दनेश्वर के कंधे पर हाथ रखे हुए महाप्रभु के उद्दण्ड नृत्य को देख रहे थे। महाराज के सामने ही दीर्घकाय श्रीवास पण्डित भाव में विभोर हुए खड़े थे। महाराज प्रभु के नृत्य को एकटक होकर देख रहे थे; किन्तु सामने खड़े हुए श्रीवास पण्डित बार बार झूम झूमकर महाराज के देखने में विघ्न डालते। राजमन्त्री हरिचन्दनेश्वर उन्हें बार बार टोंचते और वहाँ से हट जाने का संकेत करते, किन्तु हरिसमदिरा में मत्त हुए भक्त श्रीवास किसकी सुनने वाले थे। मन्त्री जी बड़े आदमी होंगे तो राज्य के होंगे, भक्तों के लिये तो यहाँ सभी समान ही थे। बार बार टोंचने पर भावावेश में भरे हुए श्रीवास पण्डित को एकदम क्षोभ हो उठा। उन्होंने आव गिना न ताव, बड़े जोरों से कसकर एक झापड़ राजमन्त्री चन्दनेश्वर के सुन्दर लाल कपोल पर जमा दिया। उस जोर के चपत के लगते ही मन्त्री महोदय अपना सभी मन्त्रीपन भूल गये, गाल एकदम और अधिक लाल पड़ गया। सम्पूर्ण शरीर में झनझनी फैल गयी। राजमन्त्री हक्के बक्के से होकर चारों ओर देखने लगे। उस समय बेहोशी मे उन्हें मान-अपमान का कुछ भी ध्यान नहीं हुआ। गहरी चोट लगने पर जैसे रक्त को देखकर पीछे से दु:ख होता है, उसी प्रकार झापड़ खाकर जब राजमन्त्री ने अपने चारों ओर देखा तब उन्हें अपने अपमान का भान हुआ। उसी समय उन्होंने अपने मन्त्रीपने की तेजस्विता दिखायी! श्रीवास पण्डित को उसी समय इसका मजा चखाने के लिये वे कर्मचारियों को कठोर आज्ञा देने लगे। परन्तु बुद्धिमान महाराज ने उन्हें शान्त करते हुए कहा- आप यह कैसी बात कर रहे हैं? देखते नहीं, ये भाव में विभोर हैं। आपका परम सौभाग्य हैं, जो ऐसे भगवद भक्त ने भगवान के भाव में आपके कपोल का स्पर्श किया। यह इनकी आपके ऊपर असीम कृपा ही है। यदि हमें इनके इस झापड़ का सौभाग्य प्राप्त होता तो हम आज अपने को सबसे बड़ा भाग्यशाली समझते। आप अपने रोष को शान्त कीजिये और महाप्रभु के कीर्तन रस का आस्वादन कीजिये। |