श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी89. पुरी के पथ में
इस प्रकार अम्बुलिंग घाट पर पहुँचकर प्रभु ने साथियों सहित स्नान किया और भक्तों को अम्बुलिंग शिव जी के सम्बन्ध में कथा सुनाने लगे। प्रभु ने कहा- जब महाराज भगीरथ स्वर्ग से गंगा जी को ले आये, तब उनके शोक में विकल होकर शिव जी यहाँ जल में गिर पडे। गंगा जी के प्रेम के कारण यहाँ शिव जी के प्रेम को जानती थीं, उन्होंने यहीं आकर शिव जी की पूजा की और जल में रहने की प्रार्थना की। गंगा जी के प्रेम के कारण यहाँ शिव जी जल में ही निवास करते हैं, इसीलिये ये अम्बुलिंग कहाते हैं, इनके दर्शन से कोटि जन्मों के पापों का क्षय हो जाता हैं।’ इस प्रकार शिव जी का माहात्म्य सुनाकर प्रभु फिर प्रेम में विह्रल होकर नृत्य करने लगे। उसी समय उस प्रान्त के शासक राजा रामचन्द्र खाँ भी वहाँ आ पहुँचे। इस बात को हम पहले ही बता चुके है कि गौड़ाधिपति की ओर से बड़े-बड़े लोगों को बहुत-से गांवों का ठेका दिया जाता था और उन्हें बादशाह की ओर से मजूमदार, खान अथवा राजा की उपाधि भी दी जाती थी। रामचन्द्र खां गौड़ाधिप के अधीनस्थ गौड़देशीय सीमा प्रान्त के ऐसे ही राजा थे। रामचन्द्र खां जाति के कायस्थ थे और शाक्त-धर्म को मानने वाले थे। उनका जीवन जिस प्रकार साधारण विषयी धनी पुरुषों का होता है, उसी प्रकार का था, किन्तु वे भाग्यशाली थे, जिन्हें महाप्रभु की थोड़ी-बहुत सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रभु के स्थान पर पधारने का समाचार सुनकर रामचन्द्र खां पालकी से उतरकर उनके दर्शन के लिये गये। उस समय आनन्द में विभोर हुए ‘महाप्रभु गदगद कण्ठ से कृष्ण का कीर्तन करते हुए रुदन कर रहे थे। रामचन्द्र खां प्रभु के तेज और प्रभाव से प्रभावान्वित हो गये और उन्होंने दूर से ही प्रभु के पादपद्मों में प्रणाम किया। किन्तु प्रभु तो बाह्यज्ञान शून्य हो रहे थे। वे तो चक्षुओं को आवृत करके प्रेमामृत का पान कर रहे थे। उन्हें किसी के नमस्कार-प्रणाम का क्या पता। प्रभु के साथियों ने प्रभु को सचेत करते हुए राजा रामचन्द्र खाँ का परिचय दिया। प्रभु ने उनका परिचय पाकर प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा- ओह ! आपका ही नाम राजा रामचन्द्र खाँ है, आपके अकस्मात खूब दर्शन हुए !’ दोनों हाथो को अंजलि बांधे हुए रामचन्द्र खाँ ने कहा- प्रभो ! इस विषयी कामी पुरुष को ही रामचन्द्र खाँ के नाम से पुकारते हैं। आज मैं अपने सौभाग्य की सराहना नहीं कर सकता, जो मुझ-जैसे संसारी गर्त में सने हुए विषयी पामर को आपके दर्शन हुए। आपके दर्शन से मेरे सब पाप क्षय हो गये। अब आप मेरे योग्य जो भी आज्ञा हो, उसे बताइये।’ |