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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
8. गीता में फलसहित विविध उपासनाओं का वर्णन
ज्ञातव्य
उत्तर- शरीर में प्रविष्ट होकर भूत प्रेत अहंवृत्ति में अर्थात् अंतःकरण में रहते हैं। ‘अहम्’ दो प्रकार का होता है-
अहंकार जीवात्मा में रहता है और अहंवृत्ति अंतःकरण में रहती है। भूत प्रेत श्वास आदि के द्वारा मनुष्य के शरीर में प्रविष्ट होकर अहंवृत्ति में रहकर इंद्रियों के स्थानों को काम में लेते हैं।
उत्तर- हाँ, रह सकते हैं. किसी-किसी व्यक्ति के शरीर में एक से अधिक भूत-प्रेत भी प्रविष्ट हो जाते हैं। जब वे उसके मुक से बोलते हैं, तब सबकी अलग-अलग आवाज सुनायी पड़ती है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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