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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
90. गीता में आये ‘मत्तः’ पद का तात्पर्य
‘ये सात्त्विक, राजस और तामस भाव मेरे से ही होते हैं।’
‘प्राणियों के बुद्धि, ज्ञान, असम्मोह आदि सभी भाव मेरे से ही होते हैं।’
‘यह सब संसार मेरे से ही चेष्टा कर रहा है।’
‘स्मृति, ज्ञान आदि मेरे से ही होते हैं।’ तात्पर्य है कि संसार में जो कुछ अच्छा मंदा, सुख-दुख आदि है, उन सबमें भगवान् का ही प्रभाव है, शक्ति है। वे सभी भगवान् से ही होते हैं, भगवान् में ही रहते हैं और भगवान् में ही लीन होते हैं। संसार में दो बातें होती हैं- करना और होना। मनुष्य कर्म ‘करता’ है और उसका फल ‘होता’ है। ‘करना’ मनुष्य के हाथ में है और ‘होना’ भगवान् के हाथ में है। अतः करने में सावधान और होने में प्रसन्न रहना चाहिए। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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