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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
79. गीता में अर्जुन द्वारा स्तुति, प्रार्थना और प्रश्न
दूसरे अध्याय के सात वें श्लोक के पूर्वार्ध में अपनी कमज़ोरी के कारण मुझे क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये'- इस विषय में अर्जुन का प्रश्न है; और उत्तरार्ध में 'मेरा निश्चित कल्याण हो जाय'- इसके लिये अर्जुन की भगवान से शरणागतिपूर्वक प्रार्थना है। फिर चौवनवें श्लोक में 'स्थितप्रज्ञ के क्या लक्षण है? वह कैसे बोलता है? कैसे बैठता है?और कैसे चलता है?' -इस तरह जिज्ञासापूर्वक चार प्रश्न हैं। तीसरे अध्याय के पहले और दूसरे श्लोक में 'जब कर्म से बुद्धि ही श्रेष्ठ है, तो फिर मेरे को घोर कर्म में क्यों लगाते हैं? जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊँ, वह एक बात कहिये'- इस तरह प्रार्थनापूर्वक प्रश्न है। छत्तीसवें श्लोक में 'पाप करना न चाहते हुए भी मनुष्य के द्वारा पाप कराने वाला कौन है?' -इस तरह जिज्ञासापूर्वक प्रश्न है। चौथे अध्याय के चौथे श्लोक में 'आपने सूर्य को उपदेश कैसे दिया?' -इस तरह भगवान के अवतार के विषय में अर्जुन का जिज्ञासापूर्वक प्रश्न है। पाँच वे अध्याय के पहले श्लोक में संन्यास और योग के विषय में अर्जुन का प्रार्थनापूर्वक प्रश्न है। छठे अध्याय के तैतीसवें-चौंतीसवें श्लोकों में अर्जुन का मन के विग्रह के विषय में (अपनी मान्यता प्रकट करते हुए) प्रश्न है। फिर सैंतीसवें-अड़तीसवें में योगभ्रष्ट की गति के विषय में संदेहपूर्वक प्रश्न है। उन्तालीसवें श्लोक में संदेह को दूर करने के लिये अर्जुन ने (भगवान की महत्ता को समझते हुए) भगवान् से प्रार्थना की है। आठवें अध्याय के पहले दूसरे श्लोकों में ब्रह्म, अध्यात्म आदि के विषय में अर्जुन का जिज्ञासापूर्वक प्रश्न है। दसवें अध्याय के बारहवें से पंद्रहवें श्लोक तक अर्जुन ने भगवान् के प्रभाव को लेकर उनकी स्तुति की। फिर सोलहवें अठारहवें श्लोक तक अर्जुन का प्रार्थनापूर्वक प्रश्न है (सोलहवें और अठारहवें श्लोक में प्रार्थना है तथा सत्रहवें श्लोक में प्रश्न है)। ग्यारहवें अध्याय के पहले से चौथे श्लोक तक विश्वरूप दिखाने के लिए अर्जुन की भगवान् से नम्रतापूर्वक प्रार्थना है। पंद्रहवें तीसवें श्लोक तक भगवान् के अलौकिक प्रभाव को लेकर स्तुति है और इकतीसवें श्लोक में प्रार्थनापूर्वक प्रश्न है। छत्तीसवें से चालीसवें श्लोक तक नमस्कारपूर्वक स्तुति है और इकतालीसवें से चौवालीसवें श्लोक तक पूर्वकृत तिरस्कार को क्षमा करने के लिए प्रार्थना है। पैंतालीसवें – छियालीसवें श्लोक में भगवान् से चतुर्भुज रूप दिखाने के लिए प्रार्थना है। बारहवें अध्याय के पहले श्लोक में ‘सगुण और निर्गुण उपासकों में कौन श्रेष्ठ है’- इस विषय में अर्जुन का जिज्ञासापूर्वक प्रश्न है। चौहवें अध्याय के इक्कीसवें श्लोक में गुणातीत के विषय में अर्जुन का प्रश्न है। सत्रहवें अध्याय के पहले श्लोक में निष्ठा को लेकर अर्जुन का प्रश्न है। अठारहवें अध्याय के पहले श्लोक में संन्यास और योग के विषय में अर्जुन का जिज्ञासापूर्वक प्रश्न है।[1] |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अर्जुन के प्रश्न के सिवाय गीता में धृतराष्ट्र और भगवान् के भी प्रश्न हैं। पहले अध्याय के पहले श्लोक में धृतराष्ट्र ने संजय से प्रश्न किया कि ‘हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से इकट्टे हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?’ और अठारहवें अध्याय के बहत्तरवें श्लोक में भगवान् ने (पूरी गीता सुनाने के बाद) अर्जुन से प्रश्न किया कि ‘हे धनंजय! क्या तुमने एकाग्रचित्त से गीता सुनी? और क्या तुम्हारा अज्ञान से उत्पन्न हुआ मोह नष्ट हुआ?’
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