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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
8. गीता में फलसहित विविध उपासनाओं का वर्णन
ज्ञातव्य
जिसके गले में तुलसी, रुद्राक्ष अथवा बद्ध पारद की माला होती है, उसका भूत प्रेत स्पर्श नहीं कर सकते। एक सज्जन प्रातः लगभग चार बजे घोड़े पर बैठकर किसी आवश्यक काम के लिए दूसरे गाँव जा रहे थे। ठंडी के दिन थे। सूर्योदय होने में लगभग डेढ़ घंटे की देरी थी। जाते-जाते वे ऐसे स्थान पर पहुँचे, जो इस बात के लिए प्रसिद्ध था कि वहाँ भूत प्रेत रहते हैं। वहाँ पहुँचते ही उनके सामने अचानक एक प्रेत पेड़ जैसा लम्बा रूप धारण करके रास्ते में खड़ा हो गया। घोड़ा बिचक जान से वे सज्जन घोड़े से गिर पड़े। उनके दोनों हाथों में मोच आ गयी। पर वे सज्जन बड़े निर्भय थे; अतः पिशाच से डरे नहीं। जब तक सूर्योदय नहीं हुआ, तब तक वह पिशाच उनके सामने ही खड़ा रहा, पर उसने उन पर आक्रमण नहीं किया, उनका स्पर्श नहीं किया क्योंकि उनके गले में तुलसी की माला थी। सूर्योदय होने पर पिशाच अदृश्य हो गया और वे सज्जन पुनः घोड़े पर बैठकर अपने घर वापस आ गये। सूर्यास्त से लेकर आधी रात तक तथा मध्याह्न के समय भूत प्रेतों में ज्यादा बल रहता है, उनका ज्यादा जोर चलता है। यह सबके अनुभव में भी आता है कि रात्रि और मध्याह्न के समय श्मशान आदि स्थानों में जाने से जितना भय लगता है, उतना भय सबेरे और संध्या के समय नहीं लगता। अगर रात्रि अथवा मध्याह्न के समय किसी एकान्त, निर्जन स्थान पर जाना पड़े और वहाँ पीछे से कोई (प्रेत) पुकारे अथवा ‘मैं आ जाऊँ’- ऐसा कहे तो उत्तर में कुछ नहीं बोलना चाहिए, प्रत्युत चलते-चलते भगवन्नाम जप, कीर्तन, विष्णुसहस्रनाम, हनुमानचालीसा, गीता आदि का पाठ शुरु कर देना चाहिए। उत्तर न मिलने से वह प्रेत वहीं पर रह जाएगा। अगर हम उत्तर देंगे, ‘हाँ, आ जा’- ऐसा कहेंगे तो वह प्रेत हमारे पीछे लग जायेगा। जहाँ प्रेत रहते हैं, वहाँ पेशाब आदि करने से भी वे पकड़ लेते हैं क्योंकि उनके स्थान पर पेशाब करना उनके प्रति अपराध है। अतः मनुष्य को जहाँ कहीं भी पेशाब नहीं करना चाहिए। हमें दुर्गति में, प्रेतयोनि में न जाना पड़े- इस बात की सावधानी के लिए गया श्राद्ध करके, पिंड पानी देकर प्रेतात्माओं के उद्धार की प्रेरणा करने के लिए ही यहाँ प्रेत विषयक चर्चा की गयी है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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